एक घड़े से प्यास बुझाने पर मुझ पर इतना अत्याचार हुआ: राम बाबू "नागवंशी"
हाल ही में जालौर में मटकी से पानी पीने को लेकर हुए इन्द्र मेघवाल हत्याकांड पर आजमगढ़ के रहने वाले कवि राम बाबू "नागवंशी" ने अपनी कलम से क्या कुछ लिखा है आगे पढ़िए
क्या गुनाह था मेरा? कि मुझ पर इतना प्रहार किया, एक घड़े से प्यास बुझाने पे मुझ पर इतना अत्याचार हुआ।
लगी थी गजब की प्यास मुझे, गला तो मेरा सुख रहा था।
मैं अनजाना था जाति पाति की बातो से, उठ खड़ा सकुचाते हुवे उस घड़े से प्यास बुझाया।
तब तक था अनभिज्ञ मैं इन सब बातों से, जातीय आतंकी मुझको पीटेगा इस छोटी सी बात पे।
क्या गुनाह था मेरा? कि मुझ पर इतना प्रहार किया, एक घड़े से प्यास बुझाने पे मुझ पर इतना अत्याचार हुआ।
मैं तो कुछ समझा नही उसने पीटना शुरू किया, एक मां बाप के बुढ़ापे का सहारा छीन लिया।
पता ही नही चला कि कब मैं उसे कारण, समय से पहले अपनों का ही आश तोड़ गया।
तुम मना रहे आज़ादी महोत्सव, मुझे तो इंसान का मिला न हक़।
इस जहां की कैसी यह आज़ादी, जहां पानी पीने का मुझे अधिकार नही।
जब खुद कि प्यास बुझा सकता नही, फिर कैसे कह दू कि मै आज़ाद हूं?
है मिली आज़ादी मुझे उन गोरो से, काले गोरों से सर्वत्र आजाद कहां हूं मैं?
तुम लहराए तिरंगा हर घर पर, किर क्यूं लिपटा कफ़न मेरे तन पर?
क्या गुनाह था मेरा? कि मुझ पर इतना प्रहार किया, एक घड़े से प्यास बुझाने पे मुझ पर इतना अत्याचार हुआ।
लेखक- राम बाबू "नागवंशी"
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