देश संविधान से चलता है या मनुस्मृति से , फैसला करे सुप्रीम कोर्ट - याचिका दायर
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट चेतन बैरवा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर , सुप्रीम कोर्ट से यह तय करने की मांग की है कि देश संविधान से चलता है या मनु स्मृति से । यदि तो देश संविधान से चलता है तो फिर हाई कोर्ट जयपुर में मनु की मूर्ति क्यों ? यह याचिका एडवोकेट बैरवा ने सामाजिक सोच रखने वाले तलावड़ा गांव ( तहसील गंगापुर सिटी , जिला सवाई माधोपुर , राजस्थान ) निवासी , रामजी लाल बैरवा ( अनु जाति ) , जगदीश प्रसाद गुर्जर ( ओबीसी ) तथा जितेंद्र कुमार मीणा ( अनु जन जाति ) की तरफ से दिनांक 12 जनवरी 2023 को दायर की है जिसमे यह कहा गया है कि हाई कोर्ट जयपुर में लगी मनु की मूर्ति संविधान विरोधी है लिहाजा उसे वहां से हटाया जाना चाहिए , खासकर इसलिए जबकि हाई कोर्ट खुद ही संविधान के आर्टिकल 214 की ताकत के बल पर खड़ा हुआ है ।
एडवोकेट बैरवा ने मनु की मूर्ति को संविधान विरोधी बताया है क्योंकि वह भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दी गई मूल भावना ( स्वतंत्रता , समानता , न्याय व बंधुता ) के खिलाफ है । एडवोकेट बैरवा ने मनु की मूर्ति को संविधान के पार्ट 3 के खिलाफ भी बताया है जिसमे कि भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार दिए हुए हैं । याचिका में एडवोकेट बैरवा ने मनु स्मृति के उन खास श्लोकों का हवाला भी दिया है जो एससी एसटी ओबीसी के खिलाफ हैं , साथ ही जो क्षत्रिय , वैश्य व महिलाओं के खिलाफ भी हैं । जैसे कि मनु स्मृति के चैप्टर 2 के श्लोक 138 में लिखा हुआ है कि 100 साल के क्षत्रिय को भी 10 साल के ब्राह्मण के बच्चे को अपने बाप के बराबर मानना चाहिए , क्यों मानना चाहिए ? इसका आज दिन तक मनु के पास कोई जवाब नही है , चैप्टर 8 के श्लोक 417 में लिखा हुआ है कि वैश्यों व शूद्रों को राज काज के नजदीक नही आने देना चाहिए वरना समाज में अराजकता फैलने का डर रहता है , चैप्टर 2 के श्लोक 218 में साफ लिखा हुआ है कि महिलाए विद्वान से विद्वान पुरुष को भी गलत रास्ते पर ले जाने में सक्षम होती है , चैप्टर 5 के श्लोक 150 में लिखा हुआ है कि महिला चाहे बूढ़ी हो या जवान उसे स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाना चाहिए , चैप्टर 1 के श्लोक 93 में लिखा है कि शूद्रों ( एससी , एसटी , ओबीसी ) को धन संचय का कोई अधिकार नहीं है , चैप्टर 10 के श्लोक 122 में लिखा हुआ है कि शूद्रों ( एससी , एसटी , ओबीसी ) को झूंठा खाना और फटे टूटे कपड़े ही पहनने को दिए जाने चाहिए , चैप्टर 4 के श्लोक 216 में लिखा हुआ है कि भील , मंदारी , लुहार , धोबी इस सबका का अन्न अपवित्र होता है लिहाजा उसे ग्रहण नही किया जाना चाहिए , चैप्टर 8 के श्लोक 397 में लिखा हुआ है कि नट , चारण , भाट तो खुद ही अपनी आजीविका के मध्य नजर अपनी स्त्रियों को सजा धजा कर पर पुरुषो के पास भेज देते है , चैप्टर 9 के श्लोक 91 में लिखा हुआ है कि सुनार पापियों का शिरोमणि होता है लिहाजा शासक को चाहिए कि वह उसके साथ शक्ति से पेश आए।
उपरोक्त श्लोकों का हवाला देते हुए एडवोकेट चेतन बैरवा ने याचिका में यह भी कहा है कि मनु की मूर्ति न केवल भारतीय लोकतंत्र की विरोधी है बल्कि वह एससी , एसटी , ओबीसी पर अत्याचार करने की प्रेरणा देने वाली भी है । धर्म परिवर्तन का मूल कारण भी एडवोकेट बैरवा ने इस याचिका में मनु स्मृति को ही माना है क्योंकि मनुवाद और जातिवाद के उत्पीड़न के चलते एससी , एसटी , ओबीसी के लोग हिंदू धर्म को त्यागकर मुस्लिम , सिख , ईसाई , बुध , जैन बन जाते है जिससे कुल मिलाकर हिंदू धर्म का ही नुकसान होता है । एससी , एसटी , ओबीसी को सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षा में आरक्षण दिए जाने के पीछे भी मूल कारण , एडवोकेट बैरवा ने मनु स्मृति द्वारा पैदा किए हुए सामाजिक भेदभाव को ही माना है । वरना बाबा साहब अम्बेडकर को संविधान में आरक्षण के प्रावधान करने की जरूरत ही नही पड़ती । मनु स्मृति को एडवोकेट बैरवा ने सीधा सीधा देश की 75 % जनता के खिलाफ बताया है जिसमे 16 % अनु जाति , 7 % अनु जन जाति तथा 52 % ओबीसी के लोग शामिल है । एडवोकेट बैरवा ने याचिका में यह भी कहा है कि सन 1947 में पाकिस्तान के बनने का मूल कारण भी मनुवाद और जातिवाद ही है क्योंकि ना एससी , एसटी , ओबीसी के साथ सामाजिक आर्थिक भेदभाव होता और न मुस्लिम जनसंख्या बढ़ती और ना मुस्लिम लीग के तत्कालीन अध्यक्ष मोहमद अली जिन्ना को पाकिस्तान बनाने की मांग करनी पड़ती । एडवोकेट बैरवा ने याचिका में आगाह किया है कि मनुवाद और जातिवाद यूं ही अगर चलता रहा तो भारत देश फिर से एक बार विभाजन का शिकार हो सकता है । याचिका के अंत में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई है कि वह राजस्थान हाई कोर्ट जयपुर को अपने यहां लगी मनु की मूर्ति हटाने के निर्देश जारी करे।
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