कविता - गरीबी अमीरी की खाई
आपके शौक पूरे नहीं होते
हमारी जरूरत पूरी नहीं होती साहब।
आपको पैसा सोने नहीं देता
हमें भूख सोने नहीं देती साहब।।
आपके नसीब में जीना है
हम मरने से पहले सौ बार मरते साहब।
आपके लिए खुशनुमा मौसम
हम सर्द हवाओं से लड़ते हैं साहब।।
आप ऊंचे सपने देखते
हम भूखे चेहरे साहब ।
आप हजारों पार कर जाते
हमारे राशन पर पहरे हैं साहब।।
आपकी ऊंची ऊंची इमारत
हमारी झोपड़पट्टी है साहब ।
आप मिलते अट्टालिकाओं के ऊपर
हम फ्लाईओवर के नीचे साहब।।
आपकी औकात अमीर है
हमारा दिल अमीर है साहब ।
आपकी हैसियत औकात से
हमारी जात से है साहब ।।
आपको हकीम बहुत है बाजार में
हम मरहम से काम चलाते साहब ।
आप दौलत से सांस खरीदते
हम गुब्बारों में बेचते हैं साहब ।।
आप मयखानों में मदिरा पीते ।
हम प्यास पीते हैं साहब ।।
आप शौक में फटी पेंट
हम तंगहाल में पहनते हैं साहब।।
आप मीडिया में रोजाना
हम चुनाव में दिखते हैं साहब ।
आप मंदिर मस्जिद के अंदर
हम चौखट पर मिलते हैं साहब।।
आप वॉक में साइकिल चलाते
हम रोटी के जुगाड़ में साहब ।
आप रोटी पचाने पसीना बहाते
हम रोटी कमाने साहब ।।
आप मेहमान को शौफा पर
हम पलकों पर बिठाते साहब ।
आप अपना जमीर बेचते
हम दुआ देते हैं साहब ।।
आपने बड़े-बड़े शिक्षालय बना लिए
हम शिक्षा के लिए तरस रहे साहब।
आपको पकी पकाई खीर मिली
हमने खिचड़ी पकाई है साहब ।।
आप खिड़कियों से झांकते
हम फटे कपड़ों में से साहब ।
अब शिक्षा रूपी शेरनी का दूध पीकर
ऊंची उड़ान भरने लगे हैं साहब।।
गरीबी अमीरी की खाई मिटेगी
मिलेगी जब शांति साहब ।
आपकी कविता कामिनी
हमारी कविता क्रांति है साहब।।
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