Gandhi Jayanti Speech: गांधी जयंती के लिए पढ़ें ये शानदार स्पीच, लोग करेंगे आपकी तारीफ
Gandhi Jayanti 2022 Speech in Hindi: 2 अक्टूबर को पूरे भारत देश मे सरकार की तरफ से अवकाश रखा जाता है, इस दिन को लोग महात्मा गांधी की जयंती के रूप मे हर्षोल्लास के साथ मानते है, भारत ही नहीं पूरे विश्व मे जो लोग गांधी जी को अपना प्रेरणास्रोत मानते है वो लोग इस दिन गांधी जी की जयंती को त्यौहार के रूप मे मानते है।
महात्मा गांधी जी की जयंती पर 2 अक्टूबर को ऐसे दें भाषण हिन्दी मे
आदरणीय प्रधानाध्यापक महोदय, शिक्षक गण और हमारे विद्यालय के सभी पढ़ने वाले मेरे साथियों आपको मेरा नमस्कार और आप सभी को महात्मा गांधी जयंती की हार्दिक मंगलकामनाए। इस खास अवसर पर मुझे यहाँ आप सभी के सामने मुझे गांधी जी की जयंती के उपलक्ष्य मे बोलने का जो मौका दिया है यह मेरे लिए सम्मान और गर्व की बात है। हर साल पूरे भारत देश मे 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी जी की जयंती हर स्तर पर मनाई जाती है, 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हमारा देश गांधी जी की जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर मानते है और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते है। महात्मा गांधी जी को सभी लोग प्यार से बापू जी कहकर भी बुलाते थे, भारत को आजादी दिलाने में गांधी जी की अहम भूमिका रही है। गांधी जी के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बहुत आंदोलन किए गए, गांधी जी ने कभी भी आंदोलन मे हिंसा का सहारा नहीं लिया, क्योंकि गांधी जी का कहना था की हमे अंग्रेजों से हिंसा के सहारे कभी आजादी नहीं मिल सकती। क्योंकि हिंसा का रास्ता अपनाने पर अंग्रेजों द्वारा वह आंदोलन पूरा नहीं होने दिया जाता था, कई आंदोलनों मे हमारे भारत के कई क्रांतिकारियों को अपनी जान गवानी पड़ी। गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो जैसे कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया था, गांधी जी चाहते तो ब्रिटेन से वकालत की पढ़ाई करने के बाद वे वहीं पर रह सकते थे, लेकिन गांधी जी भारत आए और उन्होने आजादी के लिए अंग्रेजों के विरूद्ध आंदोलन किए, भारत को आजादी दिलाने तक वे आंदोलन करते रहे। महात्मा गांधी जी ने समाज मे छुआछूत, जात-पात जैसे बुरी व्यवस्थाओं के खिलाफ भी आंदोलन किए। उन्होंने सभी को एक समान अधिकार देने की बात कही लेकिन इसके लिए तो डॉ बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान लिखकर सभी को समान अधिकार दिये। महात्मा गांधी जी के लिए परोपकार से बढ़कर कोई सेवा नहीं, और मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं था। इन्हीं सब बातों के साथ मई अपने भाषण को यही समाप्त करता हूँ। "नमस्कार"
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