मुसलमानों को एक पत्नी के रहते दूसरी से शादी करने से बचना चाहिए - इलाहाबाद हाईकोर्ट
Allahabad HighCourt : एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुरान का हवाला देते हुए कहा- 'मुसलमानों को एक पत्नी के रहते दूसरी से शादी करने से बचना चाहिए',। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लामिक कानून एक पत्नी के रहते मुस्लिम व्यक्ति को दूसरी शादी करने का अधिकार देता है, लेकिन उसे पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ कोर्ट से साथ रहने के लिए बाध्य करने का आदेश पाने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि जिस समाज में महिला का सम्मान नहीं, उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। महिलाओं का सम्मान करने वाले देश को ही सभ्य देश कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा मुसलमानों को स्वयं ही एक पत्नी के रहते दूसरी से शादी करने से बचना चाहिए। कोर्ट ने कहा एक पत्नी के साथ न्याय न कर पाने वाले मुस्लिम को दूसरी शादी करने की स्वयं कुरान ही इजाजत नहीं देता। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों का हवाला दिया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद-14 सभी को समानता का अधिकार देता है और अनुच्छेद-15(2) लिंग आदि के आधार पर भेदभाव करने पर रोक लगाता है। कोई भी व्यक्तिगत कानून या चलन संवैधानिक अधिकारों को उल्लंघन नहीं कर सकता। संविधान में जीवन के अधिकार में गरिमामय जीवन जीने का अधिकार शामिल हैं। कोई भी मुस्लिम व्यक्ति पत्नी-बच्चों की देखभाल नहीं कर सकता तो उसे पहली पत्नी की मर्जी के खिलाफ दूसरी से शादी करने का अधिकार नहीं है। यह पहली पत्नी के साथ क्रूरता है। कोर्ट बाध्य नहीं कर सकता।
पति ने पत्नी के साथ रहने के लिए केस किया
अजीजुर्रहमान व हमीदुन्निशा की शादी 12मई 1999 में हुई थी। अजीजुर्रहमान ने पहली पत्नी को बिना बताए दूसरी शादी भी कर ली जिसके बारे में पहली पत्नी को कोई पता नहीं था । पहली पत्नी के तीन बच्चे है दूसरी पत्नी के भी बच्चे है पति ने परिवार अदालत में पत्नी को साथ रहने के लिए केस दायर किया। परिवार अदालत ने पक्ष में आदेश नहीं दिया तो हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। फैसला जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस राजेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने अजीजुर्रहमान की अपील पर दिया। कोर्ट ने परिवार अदालत संत कबीर नगर की ओर से पहली पत्नी हमीदुन्निशा उर्फ शफीकुंनिशा को पति के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ रहने के लिए आदेश देने से इन्कार करने को सही करार दिया।
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