वर्तमान जीवन के यथार्थ को कैनवास पर चित्रित करती कहानियां ( पुस्तक समीक्षा )
किताब समीक्षा : सुपरिचित कहानीकार सुरंजना पांडेय के कहानी संग्रह " कहानियां बोलती हैं " इसमें लेखिका ने ज्यादातर अपने आसपास के परिवेश और इसके
यथार्थ को अपनी रचनाओं में समेटा है और इससे प्रस्तुत कहानियां पठनीय बनती प्रतीत होती हैं और इनमें हमारे जनजीवन की आहट भी प्रकट होती है। इस रोचक तथ्य के प्रमाण के रूप में मौजूदा कथा संग्रह की पहली कहानी " कुर्सी की जंग " की चर्चा समीचीन है और इसकी विषयवस्तु में विचार और चिंतन के धरातल पर देश के गांवों में पंचायत चुनावों के दौरान उम्मीदवारों के द्वारा यहां जातिगत आधार पर समाज में लोगों की लामबंदी और इससे कायम होने वाले माहौल को लेखिका ने उठाया है. इसी प्रकार इस संग्रह की दूसरी कहानी " मर्यादा " में परिवार में नयी बहू के आगमन के बाद नवविवाहित बड़े भाई की पत्नी के द्वारा घर में बंटवारे और पति की कमाई को घर में देवर और अन्य लोगों से उपजी उसकी हिफाजत की बात को लेखिका ने कथानक का आधार बनाया है और यहां वह निरंतर इसी प्रकार अपनी अन्य दूसरी कहानियों में भी वर्तमान समाज और संस्कृति के कई सवालों से रूबरू होती दिखाई देती है, कथाकार के तौर पर सुरंजना पांडेय के लेखन की यह प्रमुख विशेषता है और इस प्रकार उनकी कहानियों में समाज के बदलते परिवेश में जीवनमूल्यों
और आदर्शों के अनुरूप वर्तमान संस्कृति से संवाद का स्वर प्रवाहित है ।
इसी प्रकार " पाप और पुण्य " शीर्षक कहानी में नि:संतान दंपति राधिका और पप्पू ससुराल के सफर के दौरान किसी पेड़ के नीचे कपड़े में लिपटे पड़े किसी नवजात को पाकर उसे उठा कर आगे जीवन में अपने बच्चे के रूप में उसको अपनाते दिखाई देते हैं। सुरंजना पांडेय की कहानियों में विषयवस्तु की विविधता है और विभिन्न परिवेश और प्रसंगों को आधार बनाकर लिखी गयी कहानियां विस्तृत फलक पर समाज में मनुष्य के जीवन को चित्रित करती हैं। इस दृष्टि से " मोहरा " शीर्षक कहानी भी पठनीय है और इसमें गांवों में गरीब लोगों के जीवन में क़र्ज़ का अभिशाप और फिर सूदखोरों के चंगुल में उनके जीवन के दुख को कहानी की विषयवस्तु में उठाया गया है। यहां कहानी का पात्र दीनू कहानी के अंत में कर्ज की वजह से महाजन के रोज ब रोज के बुलावे और बेगारी से बचकर कमाकर क़र्ज़ चुकाने के लिए शहर जाकर वहां नौकरी करके क़र्ज़ चुकाने के यत्न में शामिल दिखाई देता है, सुरंजना पांडेय सामाजिक चेतना की कहानीकार हैं और उनकी कहानियों में समाज के आम लोगों के जीवन के प्रति संवेदना के भावों का समावेश है और समाज में मानवीय विसंगतियों को उनकी कहानियां खास तौर पर अपने यथार्थ में समेटती हैं।
कहानी में जीवनानुभवों की प्रधानता होती है और इसमें समाहित अनुभूतियां अपनी प्रश्नवाचक भावभंगिमा में जब लोगों के आपसी रिश्तों में निहित स्वार्थ और आत्मीय पारिवारिक संबंधों में इन दिनों प्रचलित औपचारिक मानसिकता की विवेचना करती हैं, तो वर्तमान दौर में घर परिवार के भीतर आदमी के निरंतर बदलते जीवन की कथा यहां एक गहरी पीड़ा और संत्रास के भावों को सबके मन में जन्म देती है.इस दृष्टि से " ठोकर " शीर्षक कहानी को पढ़ना दिलचस्प है . इसमें रमेश बाबू रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे में पत्नी निर्मला के साथ जिंदगी गुजर बसर करते दिखाई देते हैं लेकिन यहां बेटे - बहू को सिर्फ रमेश बाबू के पेंशन मतलब रहता है और उनके हार्ट अटैक के बाद भी उनका बेटा दफ्तर के कामकाज लैपटॉप पर निबटाने की बात मां को कहकर उन्हें अस्पताल ले जाने के प्रति उदासीनता दिखाता है और अंत में उसके पड़ोस में रहने वाला युवक आनंद रमेश बाबू को अस्पताल ले जाता है और उनकी देखरेख वहां करता है. आलोचना में कहानी को यथार्थ की प्रस्तुति की विधा कहा जाता है और इस निकष पर सुरंजना पांडेय की कहानियों में समाज और जीवन के जाने पहचाने मुद्दों के अलावा इनमें कुछ अलक्षित लेकिन उल्लेखनीय प्रसंगों को कथा के कैनवास पर सार्थक संवाद के रूप में चिंतन की भावभूमि पर अग्रसर करते देखा जा सकता है।
इस संग्रह की अगली कहानियां " करुणा" में सड़क पर अनजाने गाड़ी की ठोकर से गिरकर घायल अकेली बूढ़ी महिला और उसके चतुर्दिक जुटी तमाशबीनों के बीच इस महिला के प्रति संवेदना और सहयोग के भाव को प्रदर्शित करने वाली लड़की करुणा से सबको अवगत कराती है जो उसे अस्पताल ले जाती है." फुर्सत " शीर्षक कहानी में घर आंगन की दुनिया में बहू के रूप में औरतों के
जीवन में निरंतर फैली घरेलू व्यस्तता और इन सबके बीच फुर्सत के दो पल को पाने की कामना को लेखिका ने कथानक में समेटा है और यह कहानी गांवों कस्बों और छोटे शहरों में औरतों के जीवन यथार्थ से रुबरु होती प्रतीत होती है. इसी संदर्भ में " वक्त की मार " शीर्षक कहानी में किसी साल अपने खेत में अच्छी फसल देखकर गांव के किसान रघु के बेटी ब्याहने के सपने और फिर इसके बाद किसी रात में ओलावृष्टि से पकी फसल की बरबादी से उसके सपनों पर तुषारापात की घटना को कहानी का विषय बनाया गया है. सुरंजना पांडेय की कहानियां अपने आकार प्रकार में ज्यादातर छोटी हैं लेकिन लेखिका इनके कैनवास पर जीवन की बड़ी बातों से कहानी में कथ्य को रचती बुनती दिखाई देती है और इनमें आम बोलचाल की भाषा का सुंदर प्रयोग कहानियों की भाषा और शैली जीवंतता प्रदान करता है .
मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण इन कहानियों में सर्वत्र विसंगतियों और विडंबनाओं से घिरते जा रहे समाज के प्रति एक प्रश्नाकुलता का समावेश इन्हें पठनीय बनाता है।
लेखिका ने अपनी एक कहानी " दायरा " में माधुरी जो रामबाबू की इकलौती बेटी है और वह उच्च शिक्षा पूरी होने से पहले उसकी दादी की इच्छा के अनुरूप अपनी बेटी का विवाह कहानी में रचाकर शिक्षा से उसके जीवन में विकास की तमाम संभावनाओं में अवरोध खड़ा करते दिखाई देते हैं।
और फिर पति , ससुराल, बाल बच्चों के बीच कहानी में माधुरी का जीवन सिमटता दिखाई देता है नारी जीवन से जुड़े विचारणीय सवालों को सुरंजना पांडेय की कहानियां खास तौर पर अपने कथ्य में उजागर करती हैं और इनमें संवेदना के स्तर पर नारी जीवन के प्रति पुराने तौर तरीकों को लेकर क्षोभ के भावों का समावेश रचना में दिखाई देता है।
आदमी के जीवन उसके मनोभावों के सहज रंगों में उसके स्वभाव और उसकी प्रवृत्तियों की पड़ताल के क्रम में इस संग्रह में लिखी गई कुछ कहानियां घर परिवार के अंतरंग आपसी रिश्तों में फैली उदासी और इसकी आहट में कई बार जीवन की खुशी के सुंदर रंगों को भी मटमैला करती यथार्थ के फलक पर स्मृति के सहारे नारी मन के राग विराग में पीड़ा और व्यथा के गहरे दंश को कई बार किसी गुनगुनाहट का भी रूप देती दिखाई देती हैं और इस क्रम में " तर्पण " शीर्षक कहानी पठनीय है।
इसमें जीवनभर घर में सास की बातों की उपेक्षा और उसका अनादर करने वाली महिला कालिंदी पितृपक्ष के दौरान सास के देहावसान की स्मृति में उस दिन उसके तर्पण के लिए आकुल व्याकुल दिखाई देती है और इसी बीच उसे सास के जीवन काल में उसके प्रति अपने बर्तावों को लेकर ससुर के फटकार का सामना भी करना पड़ता है , सुरंजना पांडेय घर परिवार के रिश्तों की आत्मीय आंच में इस कहानी संग्रह की ज्यादातर कहानियों में समाज संस्कृति से
संवाद करती दिखाई देती हैं और इनमें प्रवाहित होने वाला यथार्थ निरंतर जीवन के नये आयामों के संधान में प्रवृत्त प्रतीत होता है इसलिए प्रस्तुत कहानी संकलन की शेष कहानियां भी पठनीय हैं और इनमें हमारे समाज में मनुष्य के जीवन के भीतर- बाहर की दुनिया की आवाजाही में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन का सार्थक अवलोकन समाहित है।
समाज में अच्छाई के अलावा आदमी के जीवन संघर्ष को सुरंजना पांडेय की कहानियां रेखांकित करती हैं और इसी प्रसंग में " पिता की सीख " शीर्षक कहानी में किसी दफ्तर के साधारण क्लर्क अमर बाबू अपनी
कमाई के पाई - पाई जोड़ कर अपने चारों बेटों को अच्छी पढ़ाई प्रदान करने के संघर्ष में संलग्न होकर उन्हें आगे ऊंचे सरकारी पदों पर नियुक्त कराने में सफल होते दिखाई देते हैं और एक बेटे के आईएएस बनने के बाद शहर में उसकी सफलता के जश्न के
समारोह का चित्रण भी पाठकों को पढ़ने का मौका मिलता है , सुरंजना पांडेय की कहानियों में जीवन के सुंदर भाव विचार प्रेरणा के रूप में सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं और लेखिका ने संवेदना और अनुभूति के माध्यम से कथालेखन के सृजनात्मक उपक्रम को काफी सरलता से संपन्न किया है।
हमारे देश में नीतिकथा लेखन का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है और नीति के साथ अनीति का सदैव कायम रहने वाला द्वंद्व ही सांसारिक जीवन के उपक्रमों से उपजी कथा के रूप में साहित्य सृजन का आधार माना जाता है।
सुरंजना पांडेय की कहानियों का यह प्रमुख रचना तत्व कहा जा सकता है और अक्सर इसके समावेश से वह स्वस्थ भाव विचार का प्रतिपादन अपनी कहानियों में करती दिखाई देती हैं . इस दृष्टि " पूर्णाहुति " शीर्षक कथा को पढ़ना भी रोचक है और इसमें लेखिका ने एक कंजूस सेठ का वर्णन किया है जिसे अस्पताल में आकस्मिक जरूरत के रूप में वहां की एक नर्स अपना खून देकर बचाती है लेकिन डिस्चार्ज होने के समय जब सेठानी बख्शीश के रूप में नर्स को कुछ रुपए देने के लिए कहती है तो वह इससे इंकार करता है और खून को अस्पताल में खर्च होने वाली राशि बताता है ।
इसी प्रकार " फर्क " और " मजबूरी" शीर्षक कहानी भी समाज में लड़कियों के जीवन और उनकी पढ़ाई - लिखाई की जरूरत और महत्व के प्रति महिलाओं के नये नजरिए को प्रस्तुत करती है . इस कहानी संग्रह की अंतिम कुछ कहानियों में एक कहानी " क्यारंटाइन हुए पंडित जी" हास्य व्यंग्य शैली में कोरोना काल की परेशानियों के अलावा इस दौर में लोगों की ज़िंदगी में पसरी ऊब और एकरसता से निजात पाने की चाहत का बयान भी सजीवता से करती है, इस प्रकार सुरंजना पांडेय के इस कथा संग्रह में विविध विषयों की कहानियां संकलित हैं।
समीक्षा : राजीव कुमार झा
किताब: कहानियां बोलती है ( कहानी संग्रह )
लेखिका : सुरंजना पांडेय
प्रकाशक : तनीषा पब्लिशर्स , गायत्री विहार फेज 1, जवाहर नगर 263149, उत्तराखंड
What's Your Reaction?