Buddhist Wedding: ढाई हजार वर्ष पुरानी गौरवशाली बौद्ध परंपरा के अनुसार हुआ विवाह सम्पन्न
भारतीय संविधान व डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को साक्षी मानकर दाम्पत्य सूत्र में बंधने की ली शपथ
संविधान दिवस के दिन 26 नवंबर को यह शादी बौद्ध धम्म रीति रिवाजों से हुई संपन्न। सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार मदन मोहन भास्कर ने जानकारी देते हुए बताया कि 26 नवंबर संविधान दिवस के दिन भारतीय संविधान व डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को साक्षी मानकर बौद्ध परंपरा से वजीरपुर तहसील के खंडीप गांव में समाजसेवी अध्यापक मदन मोहन जाटव ने अपनी पुत्री आशा का हिण्डौन के जटनगला निवासी संजीत के साथ व सोनम का विवाह सतेंद्र के साथ बौद्ध रीति रिवाज से आगरा निवासी बौद्धाचार्य ज्ञानप्रकाश द्वारा सम्पन्न कराया गया। 5 विवाह संकल्पों के माध्यम से बचन दिलाये गये। संकल्प लेने की दोनों परिवारों ने सहमति दी। उपासक- उपासिकाओं ने बारी बारी से स्वीकृति संकल्प लेकर स्वीकृति दी। तथागत बुद्ध व बौधिसत्व डाॅ.भीमराव आंबेडकर के छायाचित्र पर मोमबंत्तियां प्रज्वलित करके पुष्प अर्पित कर बुद्ध वंदना के बाद मंगल विवाह संखार का मंगलारम्भ कराया। दोनों परिवारों के दारक- दारिका संकल्प के साथ स्वीकृति संकल्प कराते हुए एक-दूसरें को पुष्पमाला डालकर सम्मान किया गया। तदुपरांत बौद्धाचार्य ने अट्ठगाथा का संघायान कर पुष्प वर्षा के साथ नवयुगलों को मंगलकामनाएं देकर पाणिग्गह संखार सम्पन्न कराया।
सामाजिक कार्यकर्ता मदन मोहन भास्कर ने बताया कि शादी में लोगों द्वारा समाज को उच्च शिक्षा पर जोर देने के लिए संदेश दिया गया। शादी के पंडाल में बहुजन मसीहाओं की तस्वीरें देखने को मिली । विज्ञान और शिक्षा मानव जीवन को महत्वपूर्ण बताया। इस शादी का क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है । जबकि वर वधु का मानना है कि समाज में लेनदेन जैसी कुप्रथा व खर्चीली कुरीतियां फैली हुई है जिन्हें बंद करना अत्यावश्यक है।
इस शादी में बौद्ध धर्म की परंपरानुसार भारतीय संविधान व डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को साक्षी मानकर, 22 प्रतिज्ञाओं की शपथ लेकर दांपत्य सूत्र में बंधने का और एक दूसरे का जीवन भर साथ देने का वचन वचन दिया। बौद्ध रीति रिवाज से हुई इस अनूठी शादी में समस्त रीति-रिवाजों, पाखंड और आडम्बरों का त्याग कर आजीवन साथ रहने का संकल्प लिया।
दारिकाओ के पिता मदन मोहन जाटव ने बताया कि शादी में जहां लोग मुहूर्त दिखाते है वही इस शादी में पवित्र ग्रंथ भारतीय संविधान दिवस के दिन ही शादी करना निश्चित कर लिया था। इस प्रकार की शादी में कई अड़चनें का सामना करना पड़ता है लेकिन दृढ़ निश्चय से कोई काम करो सब काम सम्भव हो जाता है। किसी भी पाखंड या परम्परा का विरोध करने पर समाज के व्यक्ति ही समझ नहीं पाते है जिससे रूढ़िवादी परम्पराओं या आडम्बरों को छोड़ना अतिआवश्यक है।
इस अवसर पर वर और वधू पक्ष के मंगल राम,देवी लाल,मदन मोहन,नवल, लखन, विजेंद्र, शिवदयाल, रामचरण,हरी,भर्ती ,प्रकाश राम सिंह, शिवचरण कासिम, ओमप्रकाश ,हरीश, हेमराज, नेतराम ,गिर्राज ,मुकेश, रामचरण, रामेश्वर, हरिप्रसाद, हरिसिंह,रामसिंह,मनोहर, रमेश,मथुरालाल,रामचरण, कुशलपुरा,संतराम वर्मा, नेकराम,शांतिलाल करसोलिया, नवल, रामप्रसाद, नेमीचंद, ताराचंद, गोपाल फौजी,लक्ष्मण,पूरण ठेकेदार, सुमेर सिंह,उदय सिंह,धर्म सिंह, राम सिंह, दिनेश, सुरेश, नरसी,धनंजय, भरत बाबा,मदन मोहन भास्कर सहित के सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे।
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