एक और कविता आशाराम मीना जी की "शब्द कहे जीवन का सार"
मैं शब्द वहां से लाता हूं,
जिससे बनता ताना-बाना।
हर शब्द में किस्सा छुपा है,
पंक्तियों में जीवन पुराना।।
मैं लिखता हूं जीवन मेरा,
क्यों बन जाता है तराना।
में लिखता हूं अपने नगमे,
गायक के बन जाते गाना।।
मैं लिखता हूं दर्द मेरा जो,
दुनिया ने हरदम दिया है।
तुम कहते कहानी लिख दी,
जो जीवन हमने जिया है।।
में चलता हूं राह जिसमें,
चलना लोगों ने छोड़ दिया।
तुम कहते हो राह अतीत की,
फिर से नाता जोड़ लिया।।
मुझको मंजिल दिख रही है,
कब से मन ने जान लिया।
तुम कहते परछाई चली थी,
इसलिए तू ने पा लिया।।
मुझको बता दे मेरी कलम,
शब्द लिखूं आगाज लिखूं।
जो डूब रहा है हर दिन मेरा,
वो डूबता समाज लिखूं।।
लेखक: आशाराम मीणा, उप प्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक कोटा।
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