आलेख: विष्णुसहस्त्रनाम के बराबर राम का नाम । डॉ लोकेंद्र सिंह कोट
आलेख : राम शब्द का जन्म ही रम धातु से बना है जिसका अर्थ होता है रमण। जो प्रत्येक के हृदय में रमण (निवास ) करते हैं वे राम है। भक्त जिसमें मन रमाते हैं वे है राम। राम का अर्थ अपार्थिव सुन्दरता भी होता है अर्थात जिनके सुन्दरता वर्णन करने में देवता भी सक्षम नहीं है । 'राम' शब्द के संदर्भ में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है, करऊँ कहा लगि नाम बड़ाई। राम न सकहि नाम गुण गाई ।। स्वयं राम भी 'राम' शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते, ऐसा राम नाम है। राम शब्द को दो बार राम-राम बोलने पर वह शब्दों की अंकगणितीय संरचना को भी पूर्ण कर देता है और पूर्ण ब्रह्म के मात्रिक गुणांक 108 को अभिव्यक्त करता है। हिंदी वर्णमाला में ''र" 27 वा अक्षर है।'आ' की मात्रा दूसरा अक्षर और 'म' 25 वा अक्षर,इसलिए सब मिलाकर जो गुणांक बनता है वह है 54 और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है । राम तो रावणस्य मरणं राम को भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि रावण के रूप में व्याप्त बुराई को राम के रूप में रमण करने वाली भक्ति का संचार कर समाप्त किया जा सकता है।
राम और रावण ऐसे प्रतीक, संप्रतीक हैं जो विरोधाभासी दिखाई देते हैं लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो यही विरोधाभास परस्पर पूरक लगता है। संपूर्ण रामायण में से यदि रावण, कैकई और मंथरा के किरदार निकाल दिया जाय तो राम को राम स्थापित करने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इसी तरह राम के बगैर रावण, कैकई और मंथरा का अस्तित्व भी कुछ नहीं होगा। इस में राम भी इसलिए राम हैं क्योंकि रावण, कैकई और मंथरा है और रावण, कैकई और मंथरा भी इसलिए है क्योंकि राम हैं। अच्छाई और बुराई लगती विरोधाभासी है लेकिन हैं एक दूसरे के पूरक। उसी सुख और दुख की तरह। सुख भी इसलिए सुख है क्योंकि दुख है और दुख भी इसलिए दुख है क्योंकि सुख है। यह घटना हमें प्रेरित करती है उपनिषद में वर्णित उस उक्ति का जिसमें कहा गया है कि जीवन खेल है और इसे खेल की तरह से लेना ही बुद्धिमत्ता है। हम जब जीवन और माया से ज्यादा जुड़ते हैं तो वही सब हमे भार लगने लगता है। पूरा जीवन विरोधाभास है और राम उसके ऐसे प्रतीक है जो हमें सीधा संदेश देते हैं कि अच्छाई और सुख की प्रधानता से भरा जीवन है जिसमें कुछ मात्रा में ही रावण, कैकई और मंथरा रूपी दुख है। जब हम सिर्फ दुख को ही जीवन मान लेते हैं तो अवसाद प्रमुखता में बाहर आ जाता है। सृष्टिकर्ता ने हरेक के जीवन में रावण, कैकई और मंथरा जितना ही दुख लिखा है उतना ही जितना राम के जीवन में था। सिर्फ रावण, कैकई और मंथरा के जितना दुख है शेष जीवन तो सुख से परिपूर्ण है।
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राम का जीवन हमारे लिए एक मानक है जहां से जीवन को आधार मिलना प्रारंभ होता है। जहां कृष्ण का जीवन साम-दाम-दंड-भेद से भरा है वहीं राम का जीवन आदर्शों की अभिव्यक्ति है। कृष्ण की कई रीति-नीति समय सापेक्ष है तो वहीं राम की रीति-नीति कालातीत है। कृष्ण की भगवत गीता किसी भी युग में प्रासंगिक है वहीं राम का संपूर्ण जीवन किसी भी युग में प्रासंगिक है। राम हमें प्रेरणा देते हैं कि मानव से देवता कैसे बना जाता है, वहीं कृष्ण का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि देवता से मानव कैसे बना जाता है। राम का बचपन बताता है कि सबके हृदय में स्थान प्राप्त करने के लिए अयोध्या जैसा आधार होना चाहिये। अयोध्या का अर्थ है जहाँ द्वंद, मनभेद, लोभ, संकुचित विचार नहीं है। क्योंकि इससे परे ही मर्यादा पुरूषोत्तम जैसी नींव का निर्माण हो सकता है। इस नींव को बालपन में ही स्थापित किया जा सकता है। बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन से सरलता आती है।
बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा। सरयू नदी उस नाद का प्रतीक है जो बहुत प्राचीन भी है और उसी समय जो उसमें बह रहा पानी है वह बिल्कुल मौलिक है, नूतन है। हम प्राचीन भी हैं और नव-नूतन भी। जिस वंशावली का हम प्रतिनिधित्व करते हैं वह पुरातन है और आज जो हम श्वास ले रहे हैं वह नूतन है। युवावस्था में राम के जीवन में भी नश्वरता और उसके प्रति विरक्ति का भाव आ गया था जो उन्हे वशिष्ठ मुनि तक ले गया और योग वशिष्ठ के जन्म का कारण बना। यही योग वशिष्ठ आज मानवता का आधार है और आत्मज्ञान की ओर एक कदम रखने का मार्ग भी है। यही निर्विकारता एक कदम है स्थिति को जस की तस स्वीकारने के लिए। स्वीकार करने से मन स्वतः शांत हो जाता है और शांत मन ही बदलाव की श्रेष्ठ भूमिका रख सकता है। राम में क्रोध का अभाव है इसलिए उनके निर्णय यथायोग्य, समायनुकूल, श्रेष्ठ हैं। रामचरित मानस में यह चौपाई उस समय को बताती है, जब भगवान राम सागर पार करने के लिए सागर से रास्ता मांगने के लिए ध्यान करने जा रहे थे। नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥ कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।।जब लक्ष्मण ने कहा कि आपके पास अद्भुत शक्ति है जिससे आप एक पल में सब कुछ बदल सकते हैं तो राम कहते हैं कि शक्ति तभी फलीभूत होती है जब कोई शांत है। जो काम शांति से हो रहा है उसके लिए शक्ति का प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
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राम अपने जीवन से बहुत कुछ प्रतिबिंबित करते हैं। वे बताते है कि छोटे अहंकार का होना जीवन को दुखदाई बना सकता है वहीं इसी का बड़ा स्वरूप आपको अपने लक्ष्य तक पहुॅचा देता है। इस संसार में सब कुछ बदल रहा है। जरूरी नहीं कि जो अभी सर्वज्ञानी है या मूर्ख है वह हमेशा ऐसा ही रहेगा। बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ। जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।
राम की मित्रता के मायने अलग ही हैं। जो मित्र किसी दुखी को देखकर दुखी हो या फिर सुख में सुख महसूस करे, निस्वार्थ सेवा का भाव रखे वही जीवन में महत्वपूर्ण है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। राम के द्वारा सुग्रीव से इस तरह की दोस्ती बताती है कि अपने सीता विरह के दुख को भुलाकर जो दूसरे के विषय में सोचता है उसके बारे में प्रकृति स्वयं सोचने लगती है।
लेखक संक्षिप्त परिचय:
नाम : डॉ. लोकेन्द्र सिंह कोट
जन्म : 18 फरवरी 1972
संप्रति- शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय, रतलाम में अध्यापन।
उपकार प्रकाशन से पंचायती राज पर पुरस्तक, विश्व बुक्स से युवाओं पर पुस्तक, छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम में कक्षा 12 वीं की अर्थशास्त्र पर पुस्तक।
देश के विभिन्न समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, व्यंग्य लघुकथाएँ, कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित। हाल ही में कलमकार प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास, ‘कुछ तो कहो गांधारी’ चर्चा में है।
भील संस्कृति के अध्ययन हेतु संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की वरिष्ठ फैलोशिप, लोकतंत्र में महिला नेतृत्व पर प्रेम भाटिया नेशनल फैलोशिप, महिलाओं द्वारा लोकतंत्र में भागीदारी पर विकास संवाद फैलोशिप, ग्रामीण भारत में टीबी और सामाजिक प्रभाव पर रिच मीडिया टीबी फैलोशिप।
वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राजभाषा पुरस्कार, पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पुस्तक, " लोकतंत्र की पाठशाला- मध्यप्रदेश में पंचायती राज" द्वारा पुरस्कार, भू संरक्षण मध्यप्रदेश शासन द्वारा पुरस्कार, आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा अस्पृश्यता निवारण पुरस्कार, लाडली मीडिया पुरस्कार 2010.
एक दर्जन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध पत्रों का प्रकाशन। इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साईंस रिसर्च के अंतर्गत कृषि में दुर्घटनाओं पर परियोजना जारी है।
डिस्क्लेमर : यह लेखक के अपने विचार हैं ।
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